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Posted by on Sep 2, 2014 in Uncategorized | 0 comments



खामोश सी इस रात में, ये तन्हाई का जो अहसास है,
मेरी रूह को इसमें खो जाने दो,रात को भी अब सो जाने दो ।
कल सुबह जब आएगी, रोशन सारा जहां कर जाएगी,
खिल उठेगी कालिया राहों में, फिर जब वो करीब आएगी,
खामोश सी इस रात में, ये तन्हाई का जो अहसास है |

अँधेरी सी इस रात का अक्स क्या, आभास क्या,
जर्रे-जर्रे में सन्नाटा सा है, हवाओं में फिर गम का सैलाब क्या,
भोर की पहली किरन का ख्याल है, पलकों पर भी रखे, सपने हज़ार है,
नयी उमंग,नयी तरंग, मन में लिए,साँसे लेने को, ज़िंदगी फिर तैयार है |

खामोश सी इस रात में, ये तन्हाई का जो अहसास है,
परछाई भी मुझसे जुदा है, ज़िंदगी भी कुछ उदास है ,
खामोश सी इस रात में, ये तन्हाई का जो अहसास है ।

तुम बिन भी क्या जीना है, यहाँ रातों के साये, वहाँ दिन का सवेरा है,
क्या कहे, बस आजकल, हर एक पल, तुम्हारी यादों का जैसे पहरा है,
आखों में तुम्हारे आने का इंतज़ार है ,और ख्वाबों में बस तू ही सवार है,
भटक रही है ज़िंदगी किस आस में, आ भी जा अब ,की दिल मेरा बेक़रार है |

खामोश सी इस रात में, ये तन्हाई का जो अहसास है,
ज़िंदा तो हु में इन साँसों में अब भी ,पर मेरे जीने की वजह तुम्हारे पास है,
खामोश सी इस रात में, ये तन्हाई का जो अहसास है |

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