जीवन को में क्या नाम दूँ………
इसे फूल कहु या तारा , इसे सागर कहु या किनारा ,
इसे बादल कहु या बरखा , अंधकार कहु या उजियारा ,
आशा कहु या निराशा , सार कहु या परिभाषा ,
खुशियो का सवांद है ये , या दुखो का आह्वान है ,
जीवन को में क्या नाम दूँ…………………..
समता है या उतेज़ना , धरम है या चेतना ,
कोई शक्ति है या सहारा , इसे दर्द कहु या बहारा ,
ये मीत है या दुश्मन , इसमें तन्हाई है या संगम ,
है शांति इसमें या नसीहत ,ख्वाब है कोई हकीकत ,
जीवन को में क्या नाम दूँ…………………..
प्यार है या नफरत , दुआ है या दौलत ,
ये दिन है या रात , सवेरा है या फिर शाम ,
पवित्र कहु या मलिन , सरल है या कठिन ,
इसे हसना कहु या रोना , या कहु सपनो का बिछोना ,
जीवन को में क्या नाम दूँ…………………..
रिश्ता कहु या बंधन , अंत कहु या आरम्भ ,
इसे आत्मा कहु या शरीर , इसे दूर रहूँ या करीब ,
ये भूख़ है या प्यास ,आदर्श है या विश्वास ,
जादू है या नशा , या फिर कहु इसे मज़ा ,
जीवन को में क्या नाम दूँ…………………..
कही तो रूककर समझाऊ खुद को की क्या है ये जीवन ,
जो पल -पल ढलता है , हर रोज नए रंग , नए रूप में बदलता है ,
थामकर इसकी अंगुली बस चलते जाना है , नए पुराने इसके रंगो में ढलते जाना है ,
हँसना और रोना दोनों ही यदि जीवन है तो क्यों ना , फिर हँसकर इसे बिताना है ,
गम और ख़ुशी का संगम अगर है तो , क्यों ना कुछ खोकर भी कुछ पाना है |
—-सोनम मारू चौधरी
Leave a Reply